बुधवार, 12 मई 2021

पवन - दूतिका व्याख्या सहित


 बैठी खित्रा यक दिवस वे गेह में थी अकेली।

आके आंसू दृग - युगल में थे धरा को भिगोते।
आई धीरे , इस सदन में पुष्प - सद्गंध को ले।
प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से।।१।।

संकेत - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के पवन - दूतिका शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय ' हरिऔध ' जी हैं।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि एक दिन राधा जी अपने घर में अकेली उदास बैठी हुई थी, और उनकी दोनो आँखो से बहते हुए आंसू धरती पर गिरकर उसे गीला कर रहे थे। तभी उसी समय फूलो की मनमोहक सुगंध के साथ वायु खिड़की के माध्यम से उनके घर में प्रवेश करती है। ऐसी मनमोहक और अत्यंत स्वच्छ वायु उनकी यादों को ताजा करने लगती है, जो पल उन्होने कृष्ण के साथ बिताए थे। इससे उनके कष्ट और बढ़ने लगते हैं।

संतापो को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।
धीरे बोली सदुख उसमे श्रीमती राधिका यों।
प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।२।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि अपने दुखो को ऐसे बढ़ता देख कर राधा दुःखी होकर धीरे से पवन से बोली की हे- प्रातःपवन तुम मुझे इतना क्यों सता रही है। क्या तुम भी इस क्रूर काल की तरह ही मुझसे नाराज हो।

मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले।
जाके आये न मधुवन से औ न भेजा संदेसा।
मै रो - रो के प्रिय - विरह से बावली हो रही हूँ।
जा के मेरी सब - दुःख कथा श्याम को सुना दे।।३।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा दुःखी होकर पवन से कह रही हैं कि , मेरे नवीन बादलरूपी , कमल के समान नेत्रो वाले श्रीकृष्ण न तो मथुरा से लौटकर आए और न ही कोई संदेशा भेजा है। मै उनके विरह की अग्नि मे जल रही हूँ। और उनकी यादों मे रो- रोकर बावली हुई जा रही हूँ। हे- पवन तुम जाओ और मेरी जितनी भी दुःखद कथा है उसे जाकर श्रीकृष्ण को सुना दो।

ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी।
शोभावली सुखद कितनी मंजू कुंजे मिलेंगी।
प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे।
तो भी मेरा दुःख लख वहाँ जा न विश्राम लेना।।४।।

व्याख्या- हरिऔध जी कहते हैं कि राधा दुःखी होकर पवन से कह रही हैं कि हे - पवन मेरे घर से निकलकर तुम जैसे ही थोड़ा सा आगे बढ़ेगो तो तुम्हे अत्यंत सुंदर बगिया मिलेगी। वो तुम्हें अपने प्यारे - प्यारे फूलो और सुंदर लताओ से आकर्षित करने का प्रयास करेगी। लेकिन तुम उसके मोह में पड़कर वहाँ मत रुकना और मेरो दुःखो को यादकर विश्राम किए बगैर निरंतर आगे बढ़ते रहना।

थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला।
अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौंदर्यशाली।
प्यारा वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा।
आना जाना इस विपिन से मुह्यमान न मिलेगा।।५।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा जी पवन से कह रही हैं कि हे- पवन और आगे बढ़ने पर तुम्हे अत्यंत मनोरम और शोभावान वृंदावन मिलेगा जिसमे मधुर पुष्प होंगे ,सुंदर और पुष्पो से लदी लताओ से घिरा हुआ अत्यंत मनमोहक और अद्वितीय प्यारा वृंदावन होगा जो तुम्हे अपनी सुंदरता से मोह लेने का प्रयास करेगा। लेकिन तुम उसके मोह में पड़कर वहाँ मत रुकना और मेरो दुःखो को यादकर विश्राम किए बगैर निरंतर आगे बढ़ते रहना।

जाते - जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।
तो जाके सत्रिकट उसकी क्लान्तियो को मिटाना।
धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।
सद्गंधो से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना।।६।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा जी पवन से कह रही हैं कि हे- पवन अगर राह में चलते-चलते तुम्हे कोई थका व्यक्ति दिखे तो तुम उसके पास जाकर उसकी थकान मिटा देना और धीरे-धीरे उसके शरीर को स्पर्श करके उसकी गरमी को समाप्त कर अपनी सुगंधित हवा से उसे प्रसन्न और आनंदित कर देना।

लज्जाशील पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये।
होने देना विकृत - वसना तो न तू सुंदरी को।
जो थोड़ी भी भ्रमित वह हो गोद ले श्रान्ति खोना।
होंठो की औ कमल दुख की म्लानलाऐं मिटाना ।।७।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा पवन से कह रही हैं कि हे- पवन रास्ते में तुम्हे कोई लज्जाशील महिला और नई नवेली दुल्हन दिखे तो तुम उसके वस्त्रो को उड़ा मत देना और यदि वह थकी हो तो तुम उसको अपनी गोद में लेकर उसकी सारी थकान मिटा देना। और उसके होंठो और कमलरूपी मुख की सभी मलिनताओं को मिटा देना।

कोई क्लान्ता कृषक - ललना खेत में जो दिखावे।
धीरे - धीरे परस उसकी क्लान्तियो को मिटाना।
जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
छाया द्वारा सुखित करना , तप्त भूतांगना को।।८।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते है कि राधा पवन से कह रही हैं कि हे- पवन यदि तुम्हें किसी किसान की बेटी दिखे तो धीरे-धीरे उसकी सारी थकान मिटा देना और आकाश में कोई बादल का टुकड़ा जा रहा हो तो उससे उस बच्ची के ऊपर छाया करके उसे प्रसन्न कर देना जिससे उसकी सारी थकान और कष्ट दूर हो सके।

5 टिप्‍पणियां:

  1. नीले फूले कमल दल सी गात की श्यामता है। पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला। छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती । सद्धस्त्रों में नवल तन की फूटती सी प्रभा है।। साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली। सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-संपोषिका है। दोनों कंधे वृषभ-वर से हैं बड़े ही सजीले। लम्बी बाँहें कलभ-कर सी शक्ति की पेटिका हैं

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