गीत (कक्षा - 12) लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गीत (कक्षा - 12) लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 15 मई 2021

गीत (जयशंकर प्रसाद ) व्याख्या सहित


 

बीती विभावरी जाग री।
अम्बर पनघट में डुबो रही -
तारा - घट  ऊषा - नागरी।

           खग - कुल  कुल-कुल सा बोल रहा।
           किसलय का अंचल डोल रहा ,
           लो यह लतिका भी भर लायी -
           मधु - मकुल नवल - रस गागरी।

अंधरो में राग अमन्द पिये,
अलकों में मलयज बन्द किये -
तू अब तक सोयी है आली!
आँखो में भरे विहाग री।।

संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के गीत शीर्षक से लिया गया है इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद जी हैं।

प्रसंग- जयशंकर प्रसाद जी ने अपनी कविता "गीत" में प्रातःकाल के मनोरम और सुंदर दृश्य का मानवीकरण कर उसे एक सुंदर स्त्री का रुप देकर जागरण काल के मनमोहक वातावरण को अत्यंत ही मधुर  लेखिनी में प्रस्तुत किया है

व्याख्या - प्रातःकाल के अत्यंत मनोरम और मनमोहक वातावरण का दृश्य सुनाते हुए जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि एक सखी दूसरी सखी से कह रही है कि रात्रि समाप्त हो गई है और यह समय तुम्हारे उठने का है। इसीलिए हे- सखी तुम जाग जाओ। जरा उठकर देखो आकाशरूपी नदी में ऊषा रूपी सुंदरी सभी तारो रूपी मटकों को डुबो रही है।

❄️ सभी पक्षी आकाश मे खुशी से चहक रहे है, और प्रातःकाल की शीतल और स्वच्छ वायु मन्द गति मे डोल रही है। लो देखो जरा ये लताऐ भी पराग रूपी रस से युक्त नवीन रसो की गगरी भर लाई है।

❄️ हे- सखी जरा आँखे खोलकर देखो कि ,किस प्रकार प्रातःकालीन सुंदरी अपने होंठो से प्रेम की मदमस्त मदिरा पी रही है और अपने बालों मे चंदन जैसी सुगंध को समाहित किए हुए है। और हे-सखी तू अभी भी अपनी आँखों मे आलस्य की निद्रा भरे हुए सो रही है।

शैली - मुक्तक
भाषा - खडीबोली


कहानी - नारी महान है।

  कहानी - नारी महान है। बहुत समय पहले की बात है। चांदनीपुर नामक गांव में एक मोहिनी नाम की छोटी सी लड़की रहा करती थी। उसकी माता एक घर मे नौक...