कहानी - नारी महान है।
बहुत समय पहले की बात है। चांदनीपुर नामक गांव में एक मोहिनी नाम की छोटी सी लड़की रहा करती थी। उसकी माता एक घर मे नौकरानी और पिता मजदूर थे। मोहिनी के परिवार मे उसके माता - पिता और एक छोटा भाई पिंकू भी था। मोहिनी के माता - पिता अत्यंत गरीब होने के कारण केवल उसके भाई को विद्यालय भेजते थे, और मोहिनी घर पर अपनी मां का हाथ बँटाती थी। परंतु मोहिनी भी विद्यालय जाकर अपने भाई की तरह पढ़ना चाहती थी। मोहिनी घर का सारा काम समाप्त करने के बाद अपने भाई की किताबे लेकर पढ़ने लगती। धीरे-धीरे यहीं सिलसिला चलता रहा और मोहिनी थोड़ी सी बड़ी हुई। एक दिन मोहिनी ने बहुत साहस करके अपने पिता के पास जाकर पढ़ने की इच्छा प्रकट की, तब उसके पिता ने उसे मना करते हुए कहा कि - बेटा हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम तुम्हे विद्यालय भेज सके। मोहिनी यह बात सुनकर बहुत उदास हो गई लेकिन तभी उसके दिमाग मे एक उपाय आया और उसने अपने पिता से कहा कि वह भी बाहर का काम करेगी। परंतु यह उपाय उसके पिता को अच्छा नही लगा और उन्होनें यह कहकर मना कर दिया कि लड़कियों का बाहर जाकर काम करना सही बात नहीं है। मोहिनी ने अपने पिता को मनाने का बहुत प्रयास किया और अंत मे उसके पिता ने उसे बाहर जाकर काम करने की आज्ञा दे दी। मोहिनी को एक फैक्टरी मे अच्छा काम मिल गया और उसे उसके काम के अच्छे पैसे मिल जाते थे। मोहिनी ने अब विद्यालय मे दाखिला ले लिया था और वह काम करने के साथ - साथ अपनी पढाई भी मन लगाकर करती। समय के साथ मोहिनी अत्यंत सुंदर और बुद्धिमान युवती बन चुकी थी। मोहिनी ने अपनी पढाई पूरी कर ली थी और अपने जमा किए हुए पैसो से उसने अपने माता-पिता के लिए एक छोटा सा सुंदर घर भी ले लिया था। अब मोहिनी कोई अच्छी सी नौकरी करके अपने माता पिता का नाम रौशन करना चाहती थी परंतु तभी उसके लिए पास के गांव से एक अच्छा रिश्ता आया और उसकी शादी हो गई। ससुराल मे उसके पति और परिवारवालों ने उसे नौकरी करने से सख्त मना कर दिया था, इसीलिए उसने खुद को घर के कामों मे पूरी तरह से व्यस्त कर लिया और अपने पति और परिवार का बहुत ही मन से ध्यान रखती। समय बीतता रहा और एक दिन अचानक सड़क दुर्घटना मे मोहिनी के पति मनोहर को काफी चोट लग गई और उसने बिस्तर पकड़ लिया। कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक चल रहा था परंतु अब तो घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही थी। मोहिनी के ससुर जी की तबियत भी कुछ सही नहीं रहती थी जो वो ही कुछ मदद करते। एक दिन मोहिनी ने अपने ससुरालवालों के सामने काम करने की इच्छा प्रकट की, क्योंकि इसके अलावा दूसरा कोई और रास्ता भी तो नहीं था। मोहिनी के सास ससुर ने उसे बाहर जाकर काम करने की आज्ञा दे दी। मोहिनी अगले ही दिन सुबह जल्दी उठकर कोई अच्छी सी नौकरी ढूंढ़ने के लिए निकल जाती है लेकिन उसे कोई भी नौकरी नहीं मिलती है। कुछ दिनों तक यहीं सिलसिला चलता रहता है। पर उसे कोई भी नौकरी नहीं मिलती। एक दिन उसे उसके स्कूल की एक सहेली रागिनी मिलती है, वह अपनी सहेली को अपनी सारी तकलीफ बताती है। रागिनी शादी के बाद शहर मे रहने लगी थी और अब उसे रोजगार के साधनों की अच्छी खासी जानकारी थी इसीलिए उसने मोहिनी को अपना एक बिजनेस शुरू करने की सलाह दी। पर मोहिनी उससे कहने लगी कि बिजनेस के लिए तो बहुत से पैसे चाहिए और उसके पास तो इतने पैसे नहीं है। तब रागिनी उससे कहती है कि तुम कपडे तो बहुत ही अच्छे सिलती हो और तुम कपडो की सिलाई का काम शुरू कर सकती हो। मोहिनी को रागिनी की ये सलाह पसंद आ जाती है और वह अब वह सुंदर सुंदर कपडे सिलती और उसके बदल मे उसे अच्छे खासे पैसे भी मिलते। उसके घर की आर्थिक स्थिति अब पहले से भी अच्छी हो गई और मोहिनी का पति मनोहर भी ठीक हो गया था। मोहिनी के सुंदर कपडो की मांग अब शहर मे भी होने लगी थी। उसका बिजनेस दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की कर रहा था। मोहिनी के ससुरालवालों को अब ये समझ आ गया था कि लड़कियां भी पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल सकती है वो किसी से भी कम नहीं होती और अपनी मेहनत और कठिन परिश्रम के दम पर पुरुषों से आगे निकल सकती है। अब मोहिनी के पति और उसके सास- ससुर भी उसकी मदद करते थे।