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रविवार, 9 मई 2021

दोहावली (कक्षा- 11)

 


हरो चरहिं, तापहिं बरत , फरे पसारहिं हाथ।
तुलसी स्वारथ मीत सब , परमारथ रघुनाथ

संकेत - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ' दोहावली ' शीर्षक से लिया गया है , इसके रचयिता ' गोस्वामी तुलसीदास ' जी हैं।

व्याख्या - तुलसीदास जी कहते हैं कि जब पेड़ हरा होता है तो जानवर उसे चरते(खाते) है जब पेड़ पूरी तरह से सूख जाता है तो वह ईधन (जलाने) के काम में आता है और जब हरा - भरा तथा फलों से लदा होता है तो हम सब उनके फल तोड़ कर खाते है। इस तरह से वृक्षों का हर एक भाग किसी न किसी काम मे आता है। इस संसार में सभी लोग सिर्फ बस अपने मतलब के लिए एक - दूसरे से दोस्ती रखते है , सिर्फ ईश्वर की बनाई प्रकृति और ये पेड़ - पौधे ही है जो बिना किसी श्वार्थ के सबकी मदद करते है।

मान राखिबो, मांगिबो, पियसों नित नव नेहु।
तुलसी तीनिउ तब फबैं, जो चातक मत लेहु

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि हमे हमेशा अपने आत्म सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। हमे हमेशा अपने प्रिय अथवा किसी अपने से ही जरुरत की वस्तु मांगनी चाहिए , किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं जो हमें वह वस्तु ना दे और , क्योंकि ऐसा करने से हमारी खुद की ही बेज्जती होती है। तुलसीदास जी का कहना है कि ये तीन बाते हमे चातक पक्षी से सीखनी चाहिए।

नहिं जाचत, नहिं संग्रही, सीस नाइ नहिं लेई
ऐसे मानी मांगनेहिं, को बारिद बिन देई 

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि चातक पक्षी सिर्फ स्वाती नक्षत्र में गिरने वाली पानी की बूंदों से ही अपनी प्यास बुझाता है अन्यथा वह प्यासा रहता है, लेकिन कभी भी उस पानी को संग्रहित करके नहीं रखता और जब भी स्वाती नक्षत्र में वर्षा होती है तो सदैव गर्व से अपने सर को ऊंचा करके पानी पीता है ऐसे मांगने पर भला कौन सा बादल पानी पिलाने से मना करेगा, अर्थात ऐसे पक्षी को तो सभी पानी पिलाना चाहेंगे।

चरन चोंच लोचन रंगौ , चलौ मराली चाल।
छीर - नीर बिबरन समय, बक उघरत तेहि काल

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि कोई भी बगुला अगर अपने पैरो , चोंच और आंखों को रंगकर हंस की तरह मनमोहक चाल चलकर भले ही वह खुद को और दूसरो को भ्रमित करे , परंतु पानी और दूध को अलग करने की प्रक्रिया के समय सभी को उसकी सच्चाई का ज्ञात हो जायेगा। क्योंकि दूध और पानी को अलग करने की क्षमता तो सिर्फ हंस के पास होती , बगुले के पास नहीं ।

आपु-आपु कह भलो, अपने कह कोइ कोइ 
 तुलसी सब कह जो भलो, सुजन सराहिय सोइ

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि अपने को तो सभी भला कहते है और अपने बारे में हमेशा अच्छा सोचते और करते हैं पर अपने परिवारजनों और दूसरो के लिए बहुत कम ही लोग सोचते हैं। और जो लोग सबके बारे मे अच्छा सोचते हैं और उनकी मदद करते है। ऐसे सज्जन व्यक्ति ही सराहना करने योग्य होते हैं।

ग्रह, भेषज, जल, पवन, पट, पाइ कुजोग - सुजोग।
होइ कुबुस्तु सुबस्तु जग, लखहिं सुलच्छन लोग

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि नक्षत्र, दवाई, पानी, वायु, वस्त्र ये सभी वस्तुएं अगर अच्छे योग को प्राप्त होंगी तो अच्छी हो जाएंगी और अगर बुरे योग को प्राप्त होंगी तो बुरी हो जायेंगी। अर्थात अगर ग्रह अच्छे नक्षत्र में होगा तो सभी कार्य पूर्ण रुप से सम्पन्न होंगे परंतु अगर ग्रह बुरे नक्षत्र में है तो सभी शुभ कार्य बंद कर दिए जाते है। उसी प्रकार अगर रोगी को सही समय पर सही दवा दे दी जाए तो वह ठीक हो सकता है और अगर ना दी जाए तो वह मर भी सकता है। पानी अगर गंगा जल मे मिल जाए तो वह शुध्द हो जाता है और यदि गंदे पानी मे मिल जाए तो अपवित्र हो जाता है। वायु यदि फूलो या किसी सुंदर और साफ वातावरण से होकर गुजरे तो तन-मन को राहत राहत देती है लेकिन यदि गंदे वातावरण से होकर गुजरे तो सांस भी नहीं लेने देती। उसी प्रकार यदि कपड़े अच्छे से पहने जाए तो हमारे व्यक्तितव को निखारते है और दूसरे तरफ यदि ढंग से न पहने जाए तो व्यक्तितव को बुरा भी बना सकते हैं।
इस संसार में हर एक वस्तु के दो पहलू होते हैं एक अच्छा तो दूसरा बुरा। इसे सिर्फ विद्वान लोग ही समझ सकते हैं, अर्थात हर मनुष्य के अंदर अच्छाई और बुराई दोनो ही विद्मान है। फर्क सिर्फ देखने के नजरिए में होता है। अगर आप अच्छे चरित्र वाले होंगे तो आपको सभी अच्छे लगेंगे लेकिन आप बुरे हैं तो आपको सभी बुरे लगेंगे।

जो सुनि समुझि अनीतिरत ,जागत रहै जु सोइ।
उपदेसिबो जगाइबो , तुलसी उचित न होइ

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं जो व्यक्ति सुनते और समझते हुए भी अनीति और बुराई मे लगा रहता है ऐसा व्यक्ति जागते हुए भी सोया हुआ होता है। और ऐसे व्यक्ति को समझाना और उपदेश देना दोनों ही व्यर्थ है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति को ये उपदेश भरी बातें कभी समझ में नहीं आयेंगी।

बरषत हरषत लोग सब , करषत लखै न कोइ।
तुलसी प्रजा - सुभाग तें भूप भानु सो होइ

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि जब वर्षा होती है तो सभी लोग खुशी नाचते है, गाते हैं और झूमते है। लेकिन जब जल वाष्प के रुप में आकाश में जाकर ठंडा होकर बादल का रूप लेता है तो इसे कोई भी नहीं देख सकता है। धन्य है ऐसी प्रजा जिसे सूर्य रूपी राजा मिला। सूर्य रूपी राजा जो सिर्फ देते हुए दिखाई देते हैं पर लेते हुए नहीं। 

मंत्री , गुरु अरु बैद जो , प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धरम तन तीनि कर , होइ बेगिही नास

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री , गुरु और वैद अगर ये तीनो ही किसी के भय मे आकर मीठे बोल बोलते है तो राज्य ,धर्म और शरीर इन तीनो का नाश होना निश्चित है। क्योंकि अगर मंत्री चापलूस है और अपने राजा को सही राह ना दिखाकर उनकी बढ़ाई करता है तो उससे सम्पूर्ण राज्य का नाश होगा। गुरु किसी लोभ अथवा भय मे अगर अपने शिष्य को उचित ज्ञान ना दे तो उससे धर्म की हानि होगी। और वैद अगर किसी भय अपने रोगी को उसके रोग्यानुसान सही बूटी ना दे तो उससे शरीर का नाश निश्चित है।

तुलसी पावस के समय,धरी कोकिलन मौन।
अब तौ दादुर बोलिहैं, हमैं पूछिहैं कौन

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि जब तक ग्रीष्म ऋतु के दिनों में आम के पेड़ों पर बौर आता है और पेड़ों पर आम रहते हैं कोयल की आवाज सिर्फ तभी तक सुनाई देती है, पर जैसे ही वर्षा ऋतु का समय आता है वैसे ही कोयल के कूकने की आवाज आनी बंद हो जाती है, ऐसा इसलिए क्योंकि वर्षा ऋतु के दिनों में मेढ़क बोलते हैं अर्थात वह समय मेढ़को के बोलने का होता है और प्रकृति हमेशा समयानुसार ही चलती है।

कहानी - नारी महान है।

  कहानी - नारी महान है। बहुत समय पहले की बात है। चांदनीपुर नामक गांव में एक मोहिनी नाम की छोटी सी लड़की रहा करती थी। उसकी माता एक घर मे नौक...