❄️ संकेत - चिर सजग आँखे ------------ ------------------ दूर जाना।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के गीत शीर्षक से लिया गया है इसकी कवयित्री महादेवी वर्मा जी है।
प्रसंग - महादेवी वर्मा जी ने अपने इस गीत के माध्यम से यह बताया है कि हमे अपने जीवन मे अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए , चाहे जीवन मे कितने ही कष्ट ही क्यों न आ जाऐ। महादेवी वर्मा जी ने अपने इस गीत के माध्यम से अत्यंत ही प्रभावशाली और प्ररेणात्मक संदेश दिया है।
व्याख्या - महादेवी वर्मा जी कहती है कि हे-मन शदियों से जो आँखे जगी हुई थी, उन आँखों मे आज निद्रा क्यों भरी हुई है और आज तुम्हारी दशा इतनी अस्त - व्यस्त क्यों है। ऐ मेरे मन तू जाग। क्योंकि अभी तो तुझे बहुत दूर जाना है।तुम्हे तो अभी अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना है। आज चाहे कठोर हिमालय के ह्दय भी कांप जाए और द्रवित हो उठे और चाहे आज मौन धारण किया हुआ आकाश भी रो - रोकर अपने आंसुओं से प्रलय मचा दे। या फिर अंधेरा आज प्रकाश को पीकर झूमने लगे। तू जाग मेरे मन, भले ही आज बिजली की तरंगो के साथ तूफान भी आ जाए। ऐ मेरे मन तुझे आज जागना ही होगा क्योंकि तुझे तो अभी नाश पथ अर्थात इस नश्वर संसार मे अपनी एक अलग पहचान बनानी है और इस संसार अपनी एक अलग पहचान बनानी है और इस संसार से जाने के पहले यहाँ अपने पद चिह्नों को छोड़कर जाना है, जो सदैव के लिए तुम्हारी याद के रूप मे इस संसार मे व्याप्त रहेंगे।
❄️ संकेत - बांध लेंगे --------------------
-------------- दूर जाना!
व्याख्या - महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन क्या तुझे ये मोमरूपी संसार के कोमल बंधन अपनी मोह-माया मे बांध लेंगे?
और तितलियों के सुंदर पंखरूपी संसार के रंग बिरंगे दृश्य तुम्हे लुभाकर तुम्हारे रास्ते की रुकावट बन जायेंगे? और क्या संसार की दुःखभरी चीख पुकार भंवरो की गुनगुनाहट को समाप्त कर देगी?, क्या फूलों की पंखुड़ियों पर पड़ी ओस की बूंदें तुझे अपने भीतर डुबा कर समाप्त कर देंगी? ऐ मेरे मन तुम अपनी ही छाया को अपने लिए कारावास मत बना लेना जो तुम्हे जीवनभर बांध कर रखे और तुम्हारे लक्ष्यप्राप्ति के मार्ग मे बाधा बने। तुम्हे सिर्फ अपने लक्ष्य पर अपना ध्यान केंद्रित करना है क्योंकि तुम्हे तो अभी बहुत दूर जाना है और अपने लक्ष्य की ओर निरंतर अग्रसर होना है।
❄️संकेत - बज्र का ----------------------
------------------- तुझको दूर जाना!
व्याख्या - महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन तुम्हारा ह्दय तो वज्र के समान कठोर है, तो क्या भला वो एक आंसू की बूंद से द्रवित हो सकता है अर्थात वह एक आंसू की बूंद से कभी भी द्रवित नहीं हो सकता है। हे- मेरे मन तुम जीवन सुधा रूपी अमृत को किसी और को देकर उसके बदले मे शराब के जहरीले और नशीले घूंट क्यों मांग लाए हो ? क्या तुम्हारी उत्साह और उमंग की आंधी चंदनरूपी शीतल हवाओं की तकिया लगाकर सो गई है और क्या सम्पूर्ण संसार का श्राप नींद का रूप लेकर तुम्हारे पास आ गया है जो तुम्हे अपने लक्ष्य की ओर कदम बढ़ाने मे विघ्न उत्पन्न कर रहा है। क्या आज तुम्हारी अमर आत्मा मृत्यु को अपने ह्दय मे सदा-सदा के लिए बसा लेना चाहती है। हे-मन तू जाग इस चिर निद्रा से क्योंकि तुझे तो अभी बहुत दूर जाना है। अपने को लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु कठिन परिश्रम करना है।
❄️ संकेत - कह न ठंडी -----------------
--------------- तुझको दूर जाना!
व्याख्या- महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन अब तुझे रो - रोकर आह भरते हुए ठंडी सांसो से सबको अपनी असफलता की कहानी नहीं सुनानी है। बल्कि लक्ष्यप्राप्ति हेतु दृढ़ संकल्प करके जीवन मे समय के साथ आगे बढ़ना है। अगर तेरे ह्दय मे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की आग होगी तो ही तेरी आँखो से निकलने वाले आंसुओं मे सफलता की चमक होगी और तुम्हारी हार और असफलताऐ ही एक दिन तुम्हारे लिए विजय पताका बन जाऐंगी। तुमने देखा होगा कि छोटे - छोटे कीट पतंगे दीपक की रोशनी मे जलकर राख हो जाते है और वही राख ही उन्हे अमरत्व की ओर ले जाती है, अर्थात अगर कोई व्यक्ति लक्ष्यप्राप्ति के मार्ग मे अपना जीवन भी त्याग देता है तो वह सदैव के लिए लोगों के बीच अमर हो जाता है तो उसका नाम जन्म-जन्मांतर के लिए लोगों को अपने गंतव्य की ओर निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहता है। तुझे तो अभी अपनी असफलताओं रूपी अंगारो की शय्या पर सफलताओं रूपी सुगंधित फूल और कलियां बिछानी है। हे - मन तू इस चिर निद्रा से जागकर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर क्योंकि तुझे अभी बहुत दूर जाना है।
❄️ संकेत - पंथ होने --------------------
---------------- संकल्प खेला!
व्याख्या- महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन! यदि यात्री अपरिचित हो तो उसे अपरिचित ही रहने दो और अगर तुम्हारे प्राण अकेले है तो उन्हे अकेले ही रहने दो तुम सिर्फ अपनी लक्ष्य प्राप्ति की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करो। आज भले ही अमावस्या रूपी विघ्न और बाधाओं का काला अंधेरा तुम्हे घेर ले और तुम्हारी आँखो से काजल मिश्रित काले आंसू बाधाओं रूपी बादलों से रिमझिम - रिमझिम बरसने लगे , परंतु तुम्हें अपने साधना पथ पर लगातार बढ़ते जाना है। जिनकी पलकें रूखी हो और उनके तिल बुझ गए हो। ऐसे नेत्र ही सूखे होंगे क्योंकि मेरे नेत्र तो सूखे नहीं है। यहाँ तो गीली दृष्टि ने ही सैकडों बाधाओं के साथ खेल खेला है और अनेंको बिजलों की तरंगो के समान कष्टों को झेला हैं। वो पैर किसी अन्य के होंगे जो लक्ष्यप्राप्ति के पथ पर एक कांटा चुभने से वापस लौट जाते हैं। अपने सारे सपने और दृढ़ संकल्प उस एक कांटे के चुभने से उसको उसी स्थान पर छोड़कर वापस लौट आते है, परंतु तुझे अपने लक्ष्य को त्यागकर वापस नहीं लौटना है बल्कि उस कांटे को अपने रास्ते की चुनौती समझकर उसे पार करके आगे बढ़ते रहना है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है।
❄️ संकेत - दुखव्रती निर्माण --------------
----------------- एक मेला!
व्याख्या - महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन! मेरे चरणों मे दुःख सहने की ताकत है और बाधाओं रूपी कांटे मेरे संकल्प को तोड़ नहीं सकते क्योंकि मेरे चरण अमरता की दूरी नापते है और मेरे चरण संसार के अंत मे व्याप्त अंधेरे को बांध कर उस अंधेरे को प्रकाश मे बदलने का पूर्ण प्रयत्न करेंगे। अरे वो किसी और की कहानी होगी, मेरी नहीं। जिसके सारे शब्द शून्य अर्थात अंधकार मे कहीं खो गए है और धूल मे पद - चिह्न हवा के माध्यम से विलुप्त हो गए हो। आज प्रलय भी जिसके साहस को देखकर आश्चर्यचकित है, वो मै ही हूँ। मेरे ह्दय मे सुख के मोतियों की बाजार और उत्साह तथा उमंग रूपी चिंगारियों का मेला लगा रहता है।
❄️संकेत - हास का मधु ------------------
--------------------- दो अकेला!
व्याख्या - महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन! तुम भले आज प्रसन्नता का शहदरूपी दूत भेजो और मुझे लुभाने का प्रयास करो, या फिर मुझ पर क्रोधित होकर अपनी भौंहे तिरछी कर लो और तुम पतझड़ का मौसम सहेज लो अर्थात मुझसे घृणा करो परंतु मुझे तनिक भी फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि मेरा ये कोमल ह्दय प्रेम से भरा हुआ है, और उस विरहरूपी प्रेम के जल मे स्वप्नरूपी कमल खिले है। इसीलिए हे-ईश्वर मेरा अकेला मन विरह वृथा के समय भी यादों के सहारे खुश है अर्थात मै विरह वृथारूपी प्रेम के जल से आपके चरणों को धोकर उस पर अपने स्वप्नरूपी कमल अर्पित करुंगी। हे-ईश्वर मेरे मन को अपरिचित और प्राणों को अकेला ही रहने दो।
❄️ संकेत - मै नीरभरी---------------------
--------------------- पराग झरा।
व्याख्या- महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन! मै आंसुओं के जल से भरी हुई, दुखरूपी बादल का एक टुकड़ा हूँ। मेरे कंपित ह्दय मे आज सदा के लिए स्थिरता बस गई है।और मेरे रोने और विलाप करने पर ये सारी हंसती है। आज मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो मेरे नेत्रों मे आशा और एक नई उम्मीद के दीपक जल रहें हो और मेरी पलकों मे आंसुओं रूपी नदी मचल रही हो। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरे हर एक कदम मे संगीत के सुरीले स्वर व्याप्त हो। और मेरी हर एक सांस मे मेरे सारे सपने पराग बनकर झड़ रहे हो।
❄️ संकेत - नभ----------------------------
--------------------- मिट आज चली।
व्याख्या- महादेवी वर्मा जी अपने मन से कहती है कि हे मन! आज मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो ये आकाश अपने सभी नवीन रंगों से मेरे लिए अत्यंत ही सुंदर और रंगीला दुपट्टा बुन रहा हो, और मै मलय बनकर शीतल और स्वच्छ वायु की छाया में पलती हुई बड़ी हो रहीं हूँ। जिस प्रकार क्षितिज (जहां धरती और आकाश आपस मे मिलते हुए दिखाई देते हो)पर सदा के लिए धुएं की भांति बादल का एक टुकड़ा छाया रहता है उसी प्रकार मेरे मस्तिष्क मे भी हमेशा चिंता का भार बना ही रहता है। आज मुझे ऐसा लग रहा है कि मै धूल के कणों पर वर्षा के जलकण बनकर गिर रही हूँ। और धरती पर पड़े बीजों मे अंकुर के रूप मे नव जीवन लेकर फिर से एक नई उमंग और जिज्ञासा के साथ इस दुनिया मे प्रवेश कर रही
हूँ। फिर महादेवी जी अपने मन से कहती है कि जिस प्रकार आकाश मे व्याप्त बादल का टुकड़ा बरसने के बाद आकाश को और भी ज्यादा उज्जवल और स्वच्छ बना देता है और उसके बाद आकाश से उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है ठीक उसी प्रकार तुम अपने अस्तित्व को त्यागकर भी अपने लक्ष्य के पथ को मैला मत होने देना और सदा तुम्हारा हित चाहने वाले लोगों को बिना निराश किए हुए अपने लक्ष्यप्राप्ति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते जाना।
महादेवी जी अपने कहती है कि मेरा बस एकमात्र लक्ष्य यह है कि ये संसार मुझे याद करके हमेशा सुख की अनुभूति करे क्योंकि मै हमेशा इस संसार मे नहीं रह सकती क्योंकि इस संसार का कोई भी कोना मेरा नहीं है। जिस प्रकार बादल का एक टुकडा हमेशा आकाश मे नहीं रह सकता ठीक वैसे ही मै भी हमेशा इस संसार मे नहीं रह सकती। जो कल एक अंकुर के भांति इस संसार मे आई थी आज वहीं जर्जर वृक्ष के रूप मे इस संसार से जा रही है मेरा परिचय और इतिहास बस इतना ही है।