बुधवार, 12 मई 2021

पवन - दूतिका व्याख्या सहित


 बैठी खित्रा यक दिवस वे गेह में थी अकेली।

आके आंसू दृग - युगल में थे धरा को भिगोते।
आई धीरे , इस सदन में पुष्प - सद्गंध को ले।
प्रातः वाली सुपवन इसी काल वातायनों से।।१।।

संकेत - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के पवन - दूतिका शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय ' हरिऔध ' जी हैं।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि एक दिन राधा जी अपने घर में अकेली उदास बैठी हुई थी, और उनकी दोनो आँखो से बहते हुए आंसू धरती पर गिरकर उसे गीला कर रहे थे। तभी उसी समय फूलो की मनमोहक सुगंध के साथ वायु खिड़की के माध्यम से उनके घर में प्रवेश करती है। ऐसी मनमोहक और अत्यंत स्वच्छ वायु उनकी यादों को ताजा करने लगती है, जो पल उन्होने कृष्ण के साथ बिताए थे। इससे उनके कष्ट और बढ़ने लगते हैं।

संतापो को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।
धीरे बोली सदुख उसमे श्रीमती राधिका यों।
प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।२।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि अपने दुखो को ऐसे बढ़ता देख कर राधा दुःखी होकर धीरे से पवन से बोली की हे- प्रातःपवन तुम मुझे इतना क्यों सता रही है। क्या तुम भी इस क्रूर काल की तरह ही मुझसे नाराज हो।

मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्र वाले।
जाके आये न मधुवन से औ न भेजा संदेसा।
मै रो - रो के प्रिय - विरह से बावली हो रही हूँ।
जा के मेरी सब - दुःख कथा श्याम को सुना दे।।३।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा दुःखी होकर पवन से कह रही हैं कि , मेरे नवीन बादलरूपी , कमल के समान नेत्रो वाले श्रीकृष्ण न तो मथुरा से लौटकर आए और न ही कोई संदेशा भेजा है। मै उनके विरह की अग्नि मे जल रही हूँ। और उनकी यादों मे रो- रोकर बावली हुई जा रही हूँ। हे- पवन तुम जाओ और मेरी जितनी भी दुःखद कथा है उसे जाकर श्रीकृष्ण को सुना दो।

ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी।
शोभावली सुखद कितनी मंजू कुंजे मिलेंगी।
प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे।
तो भी मेरा दुःख लख वहाँ जा न विश्राम लेना।।४।।

व्याख्या- हरिऔध जी कहते हैं कि राधा दुःखी होकर पवन से कह रही हैं कि हे - पवन मेरे घर से निकलकर तुम जैसे ही थोड़ा सा आगे बढ़ेगो तो तुम्हे अत्यंत सुंदर बगिया मिलेगी। वो तुम्हें अपने प्यारे - प्यारे फूलो और सुंदर लताओ से आकर्षित करने का प्रयास करेगी। लेकिन तुम उसके मोह में पड़कर वहाँ मत रुकना और मेरो दुःखो को यादकर विश्राम किए बगैर निरंतर आगे बढ़ते रहना।

थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला।
अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौंदर्यशाली।
प्यारा वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा।
आना जाना इस विपिन से मुह्यमान न मिलेगा।।५।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा जी पवन से कह रही हैं कि हे- पवन और आगे बढ़ने पर तुम्हे अत्यंत मनोरम और शोभावान वृंदावन मिलेगा जिसमे मधुर पुष्प होंगे ,सुंदर और पुष्पो से लदी लताओ से घिरा हुआ अत्यंत मनमोहक और अद्वितीय प्यारा वृंदावन होगा जो तुम्हे अपनी सुंदरता से मोह लेने का प्रयास करेगा। लेकिन तुम उसके मोह में पड़कर वहाँ मत रुकना और मेरो दुःखो को यादकर विश्राम किए बगैर निरंतर आगे बढ़ते रहना।

जाते - जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।
तो जाके सत्रिकट उसकी क्लान्तियो को मिटाना।
धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।
सद्गंधो से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना।।६।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा जी पवन से कह रही हैं कि हे- पवन अगर राह में चलते-चलते तुम्हे कोई थका व्यक्ति दिखे तो तुम उसके पास जाकर उसकी थकान मिटा देना और धीरे-धीरे उसके शरीर को स्पर्श करके उसकी गरमी को समाप्त कर अपनी सुगंधित हवा से उसे प्रसन्न और आनंदित कर देना।

लज्जाशील पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आये।
होने देना विकृत - वसना तो न तू सुंदरी को।
जो थोड़ी भी भ्रमित वह हो गोद ले श्रान्ति खोना।
होंठो की औ कमल दुख की म्लानलाऐं मिटाना ।।७।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते हैं कि राधा पवन से कह रही हैं कि हे- पवन रास्ते में तुम्हे कोई लज्जाशील महिला और नई नवेली दुल्हन दिखे तो तुम उसके वस्त्रो को उड़ा मत देना और यदि वह थकी हो तो तुम उसको अपनी गोद में लेकर उसकी सारी थकान मिटा देना। और उसके होंठो और कमलरूपी मुख की सभी मलिनताओं को मिटा देना।

कोई क्लान्ता कृषक - ललना खेत में जो दिखावे।
धीरे - धीरे परस उसकी क्लान्तियो को मिटाना।
जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
छाया द्वारा सुखित करना , तप्त भूतांगना को।।८।।

व्याख्या - हरिऔध जी कहते है कि राधा पवन से कह रही हैं कि हे- पवन यदि तुम्हें किसी किसान की बेटी दिखे तो धीरे-धीरे उसकी सारी थकान मिटा देना और आकाश में कोई बादल का टुकड़ा जा रहा हो तो उससे उस बच्ची के ऊपर छाया करके उसे प्रसन्न कर देना जिससे उसकी सारी थकान और कष्ट दूर हो सके।

रविवार, 9 मई 2021

दोहावली (कक्षा- 11)

 


हरो चरहिं, तापहिं बरत , फरे पसारहिं हाथ।
तुलसी स्वारथ मीत सब , परमारथ रघुनाथ

संकेत - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के ' दोहावली ' शीर्षक से लिया गया है , इसके रचयिता ' गोस्वामी तुलसीदास ' जी हैं।

व्याख्या - तुलसीदास जी कहते हैं कि जब पेड़ हरा होता है तो जानवर उसे चरते(खाते) है जब पेड़ पूरी तरह से सूख जाता है तो वह ईधन (जलाने) के काम में आता है और जब हरा - भरा तथा फलों से लदा होता है तो हम सब उनके फल तोड़ कर खाते है। इस तरह से वृक्षों का हर एक भाग किसी न किसी काम मे आता है। इस संसार में सभी लोग सिर्फ बस अपने मतलब के लिए एक - दूसरे से दोस्ती रखते है , सिर्फ ईश्वर की बनाई प्रकृति और ये पेड़ - पौधे ही है जो बिना किसी श्वार्थ के सबकी मदद करते है।

मान राखिबो, मांगिबो, पियसों नित नव नेहु।
तुलसी तीनिउ तब फबैं, जो चातक मत लेहु

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि हमे हमेशा अपने आत्म सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। हमे हमेशा अपने प्रिय अथवा किसी अपने से ही जरुरत की वस्तु मांगनी चाहिए , किसी ऐसे व्यक्ति से नहीं जो हमें वह वस्तु ना दे और , क्योंकि ऐसा करने से हमारी खुद की ही बेज्जती होती है। तुलसीदास जी का कहना है कि ये तीन बाते हमे चातक पक्षी से सीखनी चाहिए।

नहिं जाचत, नहिं संग्रही, सीस नाइ नहिं लेई
ऐसे मानी मांगनेहिं, को बारिद बिन देई 

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि चातक पक्षी सिर्फ स्वाती नक्षत्र में गिरने वाली पानी की बूंदों से ही अपनी प्यास बुझाता है अन्यथा वह प्यासा रहता है, लेकिन कभी भी उस पानी को संग्रहित करके नहीं रखता और जब भी स्वाती नक्षत्र में वर्षा होती है तो सदैव गर्व से अपने सर को ऊंचा करके पानी पीता है ऐसे मांगने पर भला कौन सा बादल पानी पिलाने से मना करेगा, अर्थात ऐसे पक्षी को तो सभी पानी पिलाना चाहेंगे।

चरन चोंच लोचन रंगौ , चलौ मराली चाल।
छीर - नीर बिबरन समय, बक उघरत तेहि काल

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि कोई भी बगुला अगर अपने पैरो , चोंच और आंखों को रंगकर हंस की तरह मनमोहक चाल चलकर भले ही वह खुद को और दूसरो को भ्रमित करे , परंतु पानी और दूध को अलग करने की प्रक्रिया के समय सभी को उसकी सच्चाई का ज्ञात हो जायेगा। क्योंकि दूध और पानी को अलग करने की क्षमता तो सिर्फ हंस के पास होती , बगुले के पास नहीं ।

आपु-आपु कह भलो, अपने कह कोइ कोइ 
 तुलसी सब कह जो भलो, सुजन सराहिय सोइ

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि अपने को तो सभी भला कहते है और अपने बारे में हमेशा अच्छा सोचते और करते हैं पर अपने परिवारजनों और दूसरो के लिए बहुत कम ही लोग सोचते हैं। और जो लोग सबके बारे मे अच्छा सोचते हैं और उनकी मदद करते है। ऐसे सज्जन व्यक्ति ही सराहना करने योग्य होते हैं।

ग्रह, भेषज, जल, पवन, पट, पाइ कुजोग - सुजोग।
होइ कुबुस्तु सुबस्तु जग, लखहिं सुलच्छन लोग

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि नक्षत्र, दवाई, पानी, वायु, वस्त्र ये सभी वस्तुएं अगर अच्छे योग को प्राप्त होंगी तो अच्छी हो जाएंगी और अगर बुरे योग को प्राप्त होंगी तो बुरी हो जायेंगी। अर्थात अगर ग्रह अच्छे नक्षत्र में होगा तो सभी कार्य पूर्ण रुप से सम्पन्न होंगे परंतु अगर ग्रह बुरे नक्षत्र में है तो सभी शुभ कार्य बंद कर दिए जाते है। उसी प्रकार अगर रोगी को सही समय पर सही दवा दे दी जाए तो वह ठीक हो सकता है और अगर ना दी जाए तो वह मर भी सकता है। पानी अगर गंगा जल मे मिल जाए तो वह शुध्द हो जाता है और यदि गंदे पानी मे मिल जाए तो अपवित्र हो जाता है। वायु यदि फूलो या किसी सुंदर और साफ वातावरण से होकर गुजरे तो तन-मन को राहत राहत देती है लेकिन यदि गंदे वातावरण से होकर गुजरे तो सांस भी नहीं लेने देती। उसी प्रकार यदि कपड़े अच्छे से पहने जाए तो हमारे व्यक्तितव को निखारते है और दूसरे तरफ यदि ढंग से न पहने जाए तो व्यक्तितव को बुरा भी बना सकते हैं।
इस संसार में हर एक वस्तु के दो पहलू होते हैं एक अच्छा तो दूसरा बुरा। इसे सिर्फ विद्वान लोग ही समझ सकते हैं, अर्थात हर मनुष्य के अंदर अच्छाई और बुराई दोनो ही विद्मान है। फर्क सिर्फ देखने के नजरिए में होता है। अगर आप अच्छे चरित्र वाले होंगे तो आपको सभी अच्छे लगेंगे लेकिन आप बुरे हैं तो आपको सभी बुरे लगेंगे।

जो सुनि समुझि अनीतिरत ,जागत रहै जु सोइ।
उपदेसिबो जगाइबो , तुलसी उचित न होइ

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं जो व्यक्ति सुनते और समझते हुए भी अनीति और बुराई मे लगा रहता है ऐसा व्यक्ति जागते हुए भी सोया हुआ होता है। और ऐसे व्यक्ति को समझाना और उपदेश देना दोनों ही व्यर्थ है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति को ये उपदेश भरी बातें कभी समझ में नहीं आयेंगी।

बरषत हरषत लोग सब , करषत लखै न कोइ।
तुलसी प्रजा - सुभाग तें भूप भानु सो होइ

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि जब वर्षा होती है तो सभी लोग खुशी नाचते है, गाते हैं और झूमते है। लेकिन जब जल वाष्प के रुप में आकाश में जाकर ठंडा होकर बादल का रूप लेता है तो इसे कोई भी नहीं देख सकता है। धन्य है ऐसी प्रजा जिसे सूर्य रूपी राजा मिला। सूर्य रूपी राजा जो सिर्फ देते हुए दिखाई देते हैं पर लेते हुए नहीं। 

मंत्री , गुरु अरु बैद जो , प्रिय बोलहिं भय आस।
राज धरम तन तीनि कर , होइ बेगिही नास

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री , गुरु और वैद अगर ये तीनो ही किसी के भय मे आकर मीठे बोल बोलते है तो राज्य ,धर्म और शरीर इन तीनो का नाश होना निश्चित है। क्योंकि अगर मंत्री चापलूस है और अपने राजा को सही राह ना दिखाकर उनकी बढ़ाई करता है तो उससे सम्पूर्ण राज्य का नाश होगा। गुरु किसी लोभ अथवा भय मे अगर अपने शिष्य को उचित ज्ञान ना दे तो उससे धर्म की हानि होगी। और वैद अगर किसी भय अपने रोगी को उसके रोग्यानुसान सही बूटी ना दे तो उससे शरीर का नाश निश्चित है।

तुलसी पावस के समय,धरी कोकिलन मौन।
अब तौ दादुर बोलिहैं, हमैं पूछिहैं कौन

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि जब तक ग्रीष्म ऋतु के दिनों में आम के पेड़ों पर बौर आता है और पेड़ों पर आम रहते हैं कोयल की आवाज सिर्फ तभी तक सुनाई देती है, पर जैसे ही वर्षा ऋतु का समय आता है वैसे ही कोयल के कूकने की आवाज आनी बंद हो जाती है, ऐसा इसलिए क्योंकि वर्षा ऋतु के दिनों में मेढ़क बोलते हैं अर्थात वह समय मेढ़को के बोलने का होता है और प्रकृति हमेशा समयानुसार ही चलती है।

बुधवार, 5 मई 2021

कवितावली (लंका - दहन)



                         प्रथम
बालधी बिसाल बिकराल ज्वाल-जाल मानौं,
लंक लीलिबे को काल रसना पसारी है ।
कैधौं ब्योमबीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु,
बीररस बीर तरवारि सी उघारी है ।।
तुलसी सुरेस चाप, कैधौं दामिनी कलाप,
कैंधौं चली मेरु तें कृसानु-सरि भारी है ।
देखे जातुधान जातुधानी अकुलानी कहैं,
“कानन उजायौ अब नगर प्रजारी है ।।

संदर्भ - प्रस्तुत अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक के कवितावली (लंका - दहन) शीर्षक से लिया गया है। इसके कवि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

व्याख्या - महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हनुमान जी की विशाल पूंछ मे लगी  विकराल आग की लपटों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है की मानो आज सम्पूर्ण लंका को निगलने के लिए स्वंय काल ने अपनी जीभ को फैला दिया है।
2):- धुंए से भरे आकाश को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो सम्पूर्ण आकाश अनेकों पुच्छल तारो से भरा हुआ है और सभी लंकावासियो का नाश करने के लिए महावीर योध्दाओं ने अपनी तलवारें निकाल ली है।
3):- लंका में लगी भयानक आग की लपटों से उठने वाले धुंए से भरे अंधकारमय आकाश में चमकने वाली बिजली को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे सम्पूर्ण आकाश में इन्द्रधनुष चमक रहा हो, और पिलती हुई लंका को देखकर ऐसा लग रहा है मानो सुमेरू पर्वत से अग्नि की नदी बह रही हो।
4):- तुलसीदास जी कहते हैं कि सभी राक्षस और राक्षसी व्याकुल होकर कह रहे हैं कि इस वानर ने पहले तो महल को उजाड़ दिया और अब नगर को भी उजाड़ रहा है।

                     द्वितीय
हाट, बाट, कोट, ओट, अट्टनि, अगार पौरि,
खोरि खोरि दौरि दौरि दीन्ही अति आगि है।
आरत पुकारत , संभारत न कोऊ काहू,
ब्याकुल जहाँ सो तहाँ लोग चले भागि हैं ।।
बालधी फिरावै बार बार झहरावै, झरैं
बूंदिया सी लंक पघिलाई पाग पागि है।
तुलसी बिलोकि अकुलानी जातुधानी कहैं
" चित्रहू के कपि सों निसाचर न लागिहैं "।।

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि बाजार , मार्ग , किला , गली , अटारी, तथा गली गली में दौड़ दौड़ कर हनुमान जी अपनी पूंछ से आग लगा रहे हैं।
2):- सभी लोग एक दूसरे को पुकार रहे है , लेकिन कोई भी किसी को संभाल नहीं रहा है।
व्याकुल होकर सब इधर से उधर भाग रहे हैं।
3):- हनुमान जी जब अपनी पूंछ को बार -बार
हिलाकर झाड़ते हैं तो उनकी पूंछ मे लगी विकराल आग की लपटों से छोटी - छोटी अग्नि की बूंदे जब गिरती है तो ऐसा लगता है मानो जैसे कोई पिघली हुई लंका रूपी पाग मे बूंदिया बना रहा हो।
4):- तुलसीदास जी कहते हैं कि अत्यंत व्याकुल राक्षस और राक्षसी कह रहे हैं कि अब तो कोई निशाचर चित्र मे बने वानर से भी गलती से दुश्मनी मोल नहीं लेगा।
                       तृतीय
लपट कराल ज्वाल-जाल-माल दहूँ दिसि,
अकुलाने पहिचाने कौन काहि रे ?
पानी को ललात, बिललात, जरे’ गात जाते,
परे पाइमाल जात, “भ्रात! तू निबाहि रे” ।।
प्रिया तू पराहि, नाथ नाथ तू पराहि बाप
बाप! तू पराहि, पूत पूत, तू पराहि रे” ।
तुलसी बिलोकि लोग ब्याकुल बिहाल कहैं,
“लेहि दससीस अब बीस चख चाहि रे’ ।।

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं कि विकराल  आग की लपटों से उठता हुआ धुआँ चारों दिशाओं में फैला हुआ है और इस धुंए के बीच में सभी व्याकुल होकर एक दूसरे को पुकार रहे है पर ऐसे भयानक धुंए के अंधकार में कोई किसी को पहचान नहीं रहा है।
2):- सभी लोग बुरी तरह से जले हुए है और अत्यंत व्याकुल होकर पानी पानी चिल्लाते हुए  इधर से उधर भाग रहे हैं। सभी विपत्ति में पड़े हुए हैं और अपने भाई बंधुओं को पुकारते हुए कहते हैं कि हे भाई - बंधुओं हमे बचालो।
3):- तुलसीदास जी कहते हैं कि सभी राक्षस और राक्षसी परेशान होकर अपने भाई बंधुओं से भाग जाने के लिए कह रहे हैं पति कहता है कि हे- प्रिये( पत्नी ) तुम यहाँ से भाग जाओ , पत्नी कहती है की हे नाथ तुम  यहाँ से भाग जाओ। बेटा कहता है कि पिता जी आप यहाँ से भाग जाइऐ , पिता कहते हैं की बेटा तुम यहाँ से भाग जाओ।
4):- तुलसीदास जी कहते हैं कि सभी लोग अत्यंत व्याकुल होकर कह रहे हैं कि हे दस मुख  वाले रावण लो आज अपनी बीस आंखों से सम्पूर्ण लंका का सर्वनाश देखलो।
                          चतुर्थ
बीथिका बजार प्रति , अट्नि अगार प्रति,
पवरि  पगार  प्रति  बानर  बिलोकिए।
अध ऊर्ध बानर, बिदिसि दिसि बानर है,
मानहु रह्यो है भरि बानर तिलोकिए।।
मूंदे आँखि हिय में, उघारे आँखि आगे ठाढो,
धाइ जाइ जहाँ तहाँ और कोऊ को किए ?
" लेहु अब लेहु, तब कोऊ न सिखायो मानो,
सोई सतराइ जाइ जाहि जाहि रोकिए" ।।

व्याख्या- तुलसीदास जी कहते हैं राक्षसो को बाजार में, अटारी पर , दरवाजो पर, दीवार पर हर जगह वानर ही वानर दिखाई दे रहें हैं।
2):- यहाँ - वहाँ , ऊपर - नीचे  चारो दिशाओं में वानर ही वानर दिखाई दे रहें हैं ऐसा लगता है मानो जैसे तीनों लोक वानरो से भर गये हैं ।
3):- सभी लंकावासियो के भीतर वानरो का इतना डर बैठ गया है कि आँखे बंद करने पर ह्दय मे और आँखे खोलने पर सामने खड़े हुए वानर ही दिख रहे हैं, और तो और यहाँ - वहाँ वो लोग जिस तरह भी जा रहे हैं उन्हे सिर्फ वानर ही वानर दिखाई दे रहें हैं।
4):- सभी लंकावासी एक - दूसरे से कह रहे हैं कि लो अब भुगतो उस समय रावण को किसी ने नही समझाया। जब हम सभी को रावण को समझाना चाहिए था , तब हम सभी उसके साथ थे। अगर उस समय हम लंकावासी उसका साथ ना देकर उसे सही उपदेश देते तो शायद आज लंका की ये दुर्दशा नहीं होती। यह सब हमारे ही बुरे कर्मो का फल है।


गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

हिन्दी पद्य साहित्य का इतिहास

 


आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के इतिहास कारो के मध्य चमकते हुए एक ऐसे 'ध्रुवतारा' है, जिनके विचारो की आभा कभी मलिन नहीं हो सकती। उनका दिव्य लेखन (हिन्दी साहित्य का इतिहास) आज भी मील का पत्थर सिध्द होता है। हिन्दी साहित्य का इतिहास  महान लेखक रामचन्द्र  शुक्ल  द्वारा लिखा गया हैं।


हिन्दी पद्य साहित्य के इतिहास में लगभग 1000 वर्षो के  इतिहास को चार चरणों में  विभाजित किया गया है।

❄️ आदिकाल (वीरगाथा काल)  [993 - 1318]
❄️ भक्तिकाल (पूर्व मध्यकाल)  [1318 - 1643]
❄️ रीतिकाल  (उत्तर मध्यकाल) [1643- 1843]
❄️ आधुनिक काल (वर्तमानकाल) [1843 - आज तक]

आदिकाल की प्रमुख विशेषताऐ  कुछ इस प्रकार हैं।
❄️ आश्रयदाताओ की प्रशंसा 
❄️ सामूहिक राष्ट्रियता की भावना
❄️ युध्दो का सुंदर और सजीव वर्णन 
❄️ वीर रस के साथ श्रृंगार रस की प्रधानता
❄️ ऐतिहासिक वृत्तो में कल्पना का प्राचुर्य (अधिकता)

✏️  प्रबंध  काव्य  और  गीत  काव्य  वीरगाथा  काल  की  रचनाओं  की  विशेषताऐं  हैं।

आदिकाल को पांच भागो में बाँटा गया हैं।
❄️ सिध्द साहित्य
❄️ जैन साहित्य 
❄️ रासो साहित्य 
❄️ नाथ साहित्य 
❄️ लौकिक साहित्य

✏️ सिध्द साहित्य के प्रथम कवि सरहप्पा थे। जो बौध्द धर्म का प्रचार - प्रसार करते थे।
✏️ नाथ साहित्य के प्रवर्तक श्री- गोरखनाथ थे।
✏️ वीर और श्रृंगार रस वीरगाथा काल के प्रमुख रस है।

काव्य को दो भागो मे बाँटा गया है।
❄️ श्रव्य काव्य
❄️ दृश्य काव्य 

श्रव्य काव्य को दो भागो मे बाँटा गया है।
❄️ गद्य 
❄️ पद्य 

प्रबंध काव्य को दो भागो मे बाँटा गया है।
❄️ महाकाव्य 
❄️ खंडकाव्य

              भक्ति काल (पूर्व मध्यकाल )
भक्तिकाल को दो भागो में बाँटा गया हैं ।
❄️ सगुण भक्ति शाखा
❄️ निर्गुण भक्ति शाखा
1):- सगुण भक्ति शाखा के भेद
❄️ रामाश्रयी शाखा
❄️ कृष्णाश्रयी शाखा
2):- निर्गुण भक्ति शाखा के भेद
❄️ ज्ञानाश्रयी शाखा
❄️ प्रेमाश्रयी शाखा

भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताऐ :-
❄️ एकेश्वरवाद 
❄️ गुरू की महिमा का बखान 
❄️ वह्य- आडंबरों का विरोध
❄️ सत्संगति की भावना
❄️ ज्ञान और प्रेम का महत्व

ज्ञानाश्रयी शाखा की प्रमुख विशेषताऐ :-
❄️ निर्गुण बह्म की उपासना 
❄️ अवतारवाद का खंडन
❄️ भगवान के नाम स्मरण तथा भजन पर बल
❄️ आंतरिक शुध्दि एंव प्रेम साधना पर बल 

प्रेमाश्रयी शाखा की प्रमुख विशेषताऐ :-
❄️ सूफी सिध्दांतो का निरूपड।
❄️ पूर्वी अवधी भाषा तथा दोहा,चौपाई ,छंदों का प्रयोग ।

कृष्णाश्रयी शाखा की प्रमुख विशेषताऐ :-
❄️ श्रीमद् भागवत गीता का आधार
❄️ सख्य, वात्सल्य एंव मधुर भाव की उपासना 
❄️ ब्रजभाषा मे मुक्तक काव्य शैली की प्रधानता, जिसमें अद्भुत संगीतात्मकता का गुण विद्यमान हैं।

रामाश्रयी शाखा की प्रमुख विशेषताऐ :- 
❄️ लोकहित की भावना के कारण मर्यादा की प्रबल भावना 
❄️ अवधी और ब्रजभाषा मे रचना
❄️ प्रबंध और मुक्तक काव्य शैलियो का प्रयोग
❄️ दास्य भाव की भावना 
                 
   संतकाव्य धारा के प्रमुख कवि :-
1):- कबीर 
2):- नानकदेव 
3):- रैदास आदि 

सगुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि :-
1):- सूरदास 
2):- मीराबाई
3):- तुलसीदास 
4):- केशवदास आदि।

निर्गुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि:-
1):- कबीरदास
2):- मलिक मोहम्मद जाएसी 
3):- मंझन
4):- कुतुबन आदि।

ब्रजभाषा तथा अवधी भाषा के मध्यकालीन महाकाव्य :-
❄️ सूरदास (कवि) - सूरसागर (ब्रजभाषा)
❄️ तुलसीदास (कवि)- रामचरितमानस (अवधी)

अष्टछाप के प्रमुख कवि :-
1):- सूरदास 
2):- कुंभनदास
3):- परमानंददास
4):- कृष्णदास
5):- छीतस्वामी
6):- गोविंददास
7):- चतुरभुजदास
8):- नंददास
अष्टछाप के कवि ही कृष्ण काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। महाप्रभु वल्भाचार्य जी के चार शिष्यो एंव अपने चार शिष्यो को मिलाकर वल्भाचार्य के सुपुत्र गोसाई विट्ठलनाथ जी ने अष्टछाप की स्थापना की।

             रीतिकाल( उत्तर मध्यकाल )
रीतिकाल को दो भागो में बाँटा गया हैं।
❄️ रीतिबध्द 
❄️ रीतिमुक्त

रीतिबध्द और रीतिमुक्त कविता का अंतर स्पष्ट कीजिए।
❄️ रीतिबध्द काव्य के अंतर्गत वे ग्रंथ आते हैं जिनमें काव्य तत्वो के लक्षण देकर उदाहरण के रूप में काव्य रचनायें की जाती है ।
❄️ जबकि रीतिमुक्त काव्यधारा की रचनाओं में रीति परंपरा के साहित्य बंधनों एंव रूढियो से मुक्त स्वछंद रचनायें की जाती हैं ।

रीतिमुक्त के प्रमुख कवि = घनानन्द
रीतिबध्द के प्रमुख कवि = आचार्य चिंतामणि

रीतिकाल की प्रमुख विशेषताऐ :-
❄️ राज्ञाश्रयी कवियो द्वारा लक्षण लक्ष्य पद्दति पर काव्य रचना की गई
❄️ श्रृंगार रस की प्रधानता एंव वीर रस का ओजस्वी वर्णन
❄️ मुख्यता मुक्तक शैली एंव ब्रजभाषा का प्रयोग
❄️ कला पक्ष परयुग

रीतिबध्द काव्य के प्रमुख कवि :-
1):- आचार्य चिंतामणि 
2):- केशवदास
3):- मतिराम
4):- महाकवि भूषण

रीतिमुक्त काव्य के प्रमुख कवि :-
1):- घनानन्द
2):- ठाकुर 
3):- बोधा
4):- आलम 

रीतिकाल की रचना के प्रमुख छंद :-
❄️ कवित्त
❄️ सवैया

            आधुनिक काल (वर्तमानकाल)
आधुनिक काल को चार भागो में बाँटा गया हैं ।
❄️ भारतेन्दु युग (पुनर्जागरण काल)= [1857- 1900 ई०]
❄️ दिवेदी युग (जागरण काल)= [1900- 1922 ई०]
❄️ छायावादी युग =[1919- 1938 ई०]
❄️ छायावादोत्तर युग = [1938- अब तक]

छायावादोत्तर युग को दो भागो में बाँटा गया हैं ।
1):- प्रगतिवादी और प्रयोगवादी युग = [1938- 1943ई०]
2):- नयी कविता का युग = [1943- अब तक]

भारतेन्दु युग के कवि तथा उनकी रचनाऐ :-         
1):- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (कवि)- कवि वचन सुधा, प्रेम सरोवर , प्रेम तरंग, प्रेम माधुरी 
2):- बद्रीनारायण चौधरी - वर्षाबिंदु
3):- अंबिकादत्त व्यास - पावस - पचासा
4):- श्रीधरपाठक - वनाष्टक

दिवेदी युग के कवि तथा उनकी रचनाऐ :-
1):- मैथिलीशरण गुप्त - साकेत ,यशोधरा
2):- अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध ' - प्रिय-प्रवास
3):- सियाराम शरण गुप्त - अनाथ

छायावादी युग के कवि तथा उनकी रचनाऐ :-
1):- जयशंकर प्रसाद - कामायनी 
2):- सुमित्रानन्दन पंत- पल्लव, ग्राम्या
3):- सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'- परिमल, गीतिका
4):- महादेवी वर्मा - दीपशिखा, सांध्यगीत

छायावादी युग की प्रमुख विशेषताऐ :-
❄️ सौंदर्य और प्रेम का काव्य
❄️ राष्ट्रियता की भावना
❄️ प्रकृति का मानवीकरण

छायावादी युग के रहस्यवाद कवि और उनकी रचनाऐ:-
1):- सुमित्रानन्दन पंत - पल्लव (रचना)
2):- महादेवी वर्मा - दीपशिखा (रचना)

प्रगतिवादी कवि तथा उनकी रचनाऐ:-
1):- रामधारी सिंह 'दिनकर' - उर्वशी
2):- शिवमंगल सिंह 'सुमन'- विंध्यहिमाचल से

प्रयोगवादी युग का नेतृत्व करने वाले प्रमुख कवि तथा उनकी प्रमुख रचनाऐ :-
❄️ सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय'
रचनाऐ = कितनी नावो मे कितनी बार ,तारसप्तक (मैगजीन)।

प्रयोगवादी युग के कवि तथा उनकी रचनाऐ :-
1):- सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय'
2):- गजानंद माधव
3):- मुक्तिबोध
4):- गिरिजाकुमार माथुर
5):- प्रभाकर माचवे
6):- नैमिचन्द्र जैन
7):- भारत भूषण
8):- रोमविलास शर्मा
सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' ने इन सात कवियो की कविताओ का संलकन करके 'तारसप्तक' (1943) का प्रकाशन किया।

नयी कविता का समय (अकविता )
नयी कविता के समय को अकविता भी कहा जाता है इसका आरंभ सन् (1954) मे जगदीश गुप्त और डा० रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन मे नयी कविता के प्रकाशन से हुआ। यह कविता किसी वाद से बंध कर नही चलती।

नयी कविता के प्रमुख कवि तथा उनकी रचनाऐ :-
1):- केदारनाथ अग्रवाल - युग की गंगा
2):- भवानी प्रसाद मिश्र - बूंद एक टपकी
3):- धर्मवीर भारती- कनुप्रिया, ठंडा लोहा, गुनाहों का देवता , सूरज का सातवाॅ घोड़ा 
4):- लक्ष्मीकांत 'वर्मा' - नीम के फूल , सफेद चेहरे 
5):- जगदीश गुप्त - युग्म, बोधिवृक्ष
6):- डा० रामस्वरूप चतुर्वेदी - भाषा और संवेदना 
7):- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - कांठ की घंटिया, बांस का पुल 

गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

STUDENT LIFE IS THE GOLDEN LIFE


 


किसी ने सही ही कहा है कि छात्र जीवन स्वर्णिम जीवन है। स्कूल के दिनों में बिताया हर पल बहुत ही अविस्मरणीय, सुंदर और प्यारा है जो जीवन में कभी नहीं भुलाया जा सकता है| लेकिन आप में कुछ लोग शायद सोच रहे होंगे की यार पढ़ना भी तो बहुत पड़ता है | कुछ लोगो को लगता है कि स्कूल में तो हर महीने एग्जाम देने पड़ते है, तो स्कूल लाइफ गोल्डन लाइफ कैसे हुई| जिंदगी इतनी आसान भी नहीं होती है हमें कदम-कदम पर खुद को साबित करना होता है| स्कूल ही वो जगह होती है जहां पर हमें सिखाया जाता है की हम अपनी परीक्षा में कैसे खरे उतरे| स्कूल की छोटी - छोटी परीक्षाएं देते - देते हम इतने काबिल हो जाते है, की हमें पता भी नहीं चलता है कि कब हम जीवन की बड़ी - बड़ी मुश्किल से लड़ना सीख जाते है| स्कूल के वो प्यारे प्यारे दोस्त जो जीवन के किसी भी मोड़ पर दुबारा नहीं मिल सकते, वो सिर्फ हमें स्कूल में ही मिलते है और स्कूल के बाद तो जैसे वो कही गायब से हो जाते है|


स्कूल में हमें सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि उसके अलावा खेल कूद, नृत्य, संगीत, और योग का भी ज्ञान दिया जाता है| हमारे शिक्षक ही हमें अंदर से मजबूत और दृण संकल्पी बनाते है| वो ही हमा उज्जवल भविष्य की भावी नीव को तैयार करते है. जीवन के सबसे खूबसूरत पल हम अपने स्कूल में ही बिताते है. हमारा स्कूल ही ऐसी जगह होता है| जहां हमें प्यारे- प्यारे दोस्त मिलते है| स्कूल में हमें हमारे शिक्षक नैतिक शिक्षा का भी ज्ञान देते है ताकि जीवन के किसी भी मोड़ में हमें किसी के सामने शर्मिंदा न होना पड़े, और हम अपनी अच्छी आदतों से सभी के चहिते बन सके| जीवन में नैतिक शिक्षा का होना बहुत ही आवश्यक है, तभी हम अच्छे आचरण वाले कहलायेंगे| किताबी ज्ञान लेकर हम होशियार तो बहुत बन सकते है पर अच्छे इंसान नहीं बन सकते| स्कूल के दिनों में हम सभी आजाद पंछी होते है, पर पढाई समाप्त होने के बाद सभी बच्चे बड़े हो जाते है, और अपने अपने जीवन की मुश्किलों में फंस जाते है| कही कॉलेज की पढ़ाई का बोझ तो कही नौकरी न मिलने की दिक्कत अगर नौकरी मिल भी गयी है तो सैलरी से संतुष्टि नहीं है| बस इन्ही सब मे जिंदगी उलझ कर रह जाती है| इसीलिए स्टूडेंट्स लाइफ बेस्ट होती है न कोई चिंता न परेशानी बस खाओ पीओ और पढ़ो लिखो|


Someone has rightly said that Student life is golden life. Every moment spent during the school days is very memorable, beautiful and lovely which can never be forgotten in life. Some people thinks that they have to take exams every month in school. So how did the school life become the golden life. Life is not so easy, we have to prove ourselves step by step. School is the place where we are learn how to pass every exam of our life. We become so capable while giving top-notch examinations of school we don't know when we learn to fight with the biggest difficulty of life. Dear friends of school who cannot meet again at any point of life, We only meet us in school and after completing the school studies they can't meet again in life, like they disappeared from this world.


In school, we have not only learn bookish knowledge but Apart from this, knowledge of sports, dance, music, and yoga is also taught by teachers. Our teachers make us strong and visionary from within. They prepare the future foundation of our bright future. We spend the most beautiful moments of life in our school. Our school is the only one Place, Where we meet with dear friend. In school, our teachers also give us knowledge of moral education so that in any turn of life, we do not have to be ashamed of anyone, and we become friends of everyone with our good habits. It is very important to have moral education in life, only then we will be called good conducters. We can become very smart by taking bookish knowledge but we cannot become good human beings. We all are free birds during school days but after the completion of studies, all the children grow up and get caught in the difficulties of their lives. Burden of college studies, not getting a higher job anywhere, even if you have got a job, then there is no satisfaction from salary. Life is just a mess in all of them.That is why students life is the best and golden life no worries or problems. Just eat, drink, read and write.




मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

UNEMPLOYMENT


 
In today's time unemployment has become a major problem of our country. The 30% peoples are umemployed out of 100%, and its reason is that lack of jobs. If only singal man earn in home but, other family members are only for eating. It means that others are unemployed. They have no any work. If this continues, then one day less employed workers are left in our country. For controlling the problem of unemployment, government give more - n - more jobs to the peoples according there qualification and skills.







There are lots of educated peoples in our country but the problem is that they are unemployed. Everyone has a best qualifications degree but it is very difficult to get a good job. After searching a jobs for long time, some rich peoples start their business. But, poor people who have no money, how to start their own business. Lifetime they work hard and study well but, at the last moment they don't get a good jobs. 
Poor people of our country who grow up reading and writing their children with so much help so that their children can become their eyes in old age. So, just think what would have passed on their hearts if their children did not get jobs. Shortage of jobs is giving rise to problems like unemployment. 

If unemployment is looked at with rest, it is looking like an epidemic which has made the people of our country lame. You all are don't know how many people are suicide due to unemployment, Because after a while, families also leave us and after their that we have to reach our destination on our own strength. How long the family also kept in home and full our all wises. One day, we have to still earn money and eat at own strength.






Due to the unemployment, many peoples are suicide under the pressure of family society in  year. Inflation is getting high day by day. In such a situation, it is very difficult for the common man to survive. How will an unemployed person live in such inflation? To eradicate problems like unemployment government need to take an action. Government have to provide more jobs to everyone according to their skills so, that our country become great and powerful in every field.



कहानी - नारी महान है।

  कहानी - नारी महान है। बहुत समय पहले की बात है। चांदनीपुर नामक गांव में एक मोहिनी नाम की छोटी सी लड़की रहा करती थी। उसकी माता एक घर मे नौक...